18 जुलाई 1946 को नरसिंहगढ़ मध्य प्रदेश में जन्मे राजेश जोशी समकालीन हिंदी कविता के स्थापित कवि हैं। उनकी कविताएं मौजूदा समय व समाज पर एक टिप्पणी होती हैं। कला का दायित्व चूंकि जीवन और समाज के प्रति होता है और इस लिहाज़ से राजेश जोशी की कविताएं अपने कहन में काफ़ी सजग व सचेत हैं । जीवन में मनुष्यता को बचाए रखने या फिर इसे यों कहें कि जीवन में जीवन को बचाए रखने के आकांक्षी राजेश जोशी अपनी कविताओं में समय व सत्ता से संघर्ष करते हुए भी अपनी इस आकांक्षा को कभी नहीं छोड़ते।
उनकी राजनीतिक कविताएं अपने कथ्य की गंभीरता के साथ साथ शिल्प की बारीकी का नमूना हैं। उनकी कविताओं में हमें बहुत सारी स्मृतियां, जीवन के बहुत सारे प्रसंग मिल जाएंगे।
मौलिक रचनाओं के साथ साथ राजेश जोशी ने दूसरी भाषाओं की महत्वपूर्ण कविताओं का अनुवाद भी किया है। उनकी खुद की कविताओं का कई भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है। कविताओं से इतर राजेश जोशी ने रचनात्मक व विचारात्मक गद्य भी लिखे हैं।
अपनी रचना प्रक्रिया व कविताओं के सरोकारों पर बात करते हुए राजेश जोशी स्वयं कहते हैं;
… इस समय के अंतर्विरोधों व विडंबनाओं को व्यक्त करने और प्रतिरोध के नए उपकरण तलाश करने की बेचैनी हमारी पूरी कविता की मुख्य चिंता है! उसमें कई बार निराशा भी हाथ लगती है और उदासी भी लेकिन साधारण जन के पास जो सबसे बड़ी ताकत है और जिसे कोई बड़ी से बड़ी वर्चस्वशाली शक्ति और बड़ी से बड़ी असफलता भी उससे छीन नहीं सकती, वह है उसकी ज़िद!
वर्तमान में वे भोपाल, मध्य प्रदेश में रह रहे हैं।
आइए, आज इस प्रतिबद्ध कवि राजेश जोशी की एक कविता “मारे जाएंगे” पढ़ते हैं। यह कविता राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित ‘प्रतिनिधि कविताएं: राजेश जोशी’ संकलन में मौजूद है।
यह कविता एक सच है, अपने लिखे जाने के समय के साथ-साथ यह आज के समय का भी सच है, सच जिसे ढक दिया जाता है, छिपा दिया जाता है, उसे राजेश जोशी अपनी कविताई में उजागर कर देते हैं और उनकी यह प्रतिबद्धता उनकी ज़िद भी है।
आइए पढ़ते हैं राजेश जोशी की कविता “मारे जाएंगे”
मारे जाएंगे
जो इस पागलपन में शामिल नहीं होंगे
मारे जाएँगे
कटघरे में खड़े कर दिए जाएँगे, जो विरोध में बोलेंगे
जो सच-सच बोलेंगे, मारे जाएँगे
बर्दाश्त नहीं किया जाएगा कि किसी की क़मीज़ हो
‘उनकी’ क़मीज़ से ज़्यादा सफ़ेद
क़मीज़ पर जिनके दाग़ नहीं होंगे, मारे जाएँगे
धकेल दिए जाएँगे कला की दुनिया से बाहर, जो चारण नहीं
जो गुन नहीं गाएँगे, मारे जाएँगे
धर्म की ध्वजा उठाए जो नहीं जाएँगे जुलूस में
गोलियाँ भून डालेंगी उन्हें, काफ़िर क़रार दिए जाएँगे
सबसे बड़ा अपराध है इस समय
निहत्थे और निरपराध होना
जो अपराधी नहीं होंगे
मारे जाएँगे।