Culture & Resistance

क्रांतिकारी कवि ‘पाश’ को याद करते हुए

पाश सत्तर के दशक में पंजाबी काव्य जगत के रौशन सितारा थे। वह अपने समाज और अपनी ज़मीन से सीधे जुड़े हुए कवि थे। पाश की कविताओं को पढ़ते हुए बार-बार आप पाठक की भूमिका भूल जाते हैं और अपने समय और अपने ख़ुद के वजूद से एक बार फिर साक्षात्कार करने लगते हैं, और एक ऐसे आत्मसंघर्ष में उतर पड़ते हैं जो अपने किसी बहुत नज़दीकी दोस्त के साथ अंतरंग ईमानदार बातचीत के दौरान ही मुमकिन हो सकता है।

On International women’s day, celebrating the legacy of fierce feminist Tarabai Shinde

The publication of “Stri Purush Tulana” was met with a fierce backlash from the male-dominated literary establishment. Tarabai was accused of blasphemy and immorality, and her book was banned. Despite this opposition, Tarabai continued to advocate for women’s rights and spoke out against the injustices that women faced.

इंकलाब और मुहब्बत से लबरेज़ अहमद फ़राज़

मुहब्बतों का शायर समझे जाने वाले अहमद फ़राज़ की कई नज़्में उनके इंकलाबी तेवर को नुमाया करती हैं। आइए फ़राज़ की नज़्मों के इंकलाबी तासीर से रूबरू होते हैं।

भाषाएँ पूरे जीवन को अपने कंधों पर उठा कर चलती हैं – सत्यपाल सहगल

सवाल करना हल की दिशा में पहला कदम है। इसलिए हर ज़रूरी मसलों पर सवाल उठाते रहना चाहिए। फ़र्क पड़ता है – सत्यपाल सहगल

संस्थाएं स्वतंत्र और निर्भीक व्यक्तियों को अफोर्ड ही नहीं कर सकती – शायदा बानो

हम इंसान के तौर पर कहाँ जा रहे हैं हैं मुझे नहीं मालूम।, इसमें हमारे समाज का ढांचा कितना  जिम्मेदार है मैं नहीं जानती पर यह सवाल तो है ही कि हम कितना निष्पक्ष और समतामूलक समाज बना पा रहे हैं?  

“आपने घबराना नहीं है” के स्लोगन के साथ एक सुंदर जगह सिरजता सीमांचल लाइब्रेरी फाउंडेशन

साकिब कहते हैं: “दरअसल सीमित संसाधन होने की वजह से हमारा कैनवास थोड़ा छोटा है। इसलिए जो बच्चे लगातार आ रहे हैं और इन्सान बने रहने में जिनका यकीन है, फ़िलहाल हम उन पर अपना ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं।”  

एक बेहतर समाज के लिए मौलिक चिंतन सबसे ज़्यादा ज़रूरी है – सुरजीत पातर

सामाज में जो क्लास डिविजन है, उसमें हायर क्लास के लोगों को लगता है कि उनके कपडे भी अलग हों और ज़बान भी अलग हों, तभी वे उच्च रह सकेंगे। बड़े माने जाएंगे। इसे बदलने का सबसे बड़ा तरीका यह है कि राष्ट्रीय स्तर पर एक भाषा नीति होनी ही चाहिए|

आप भी मुक्त हों और दूसरों को भी मुक्त करें – डॉ. सरबजीत सिंह के साथ बातचीत

डॉ सरबजीत सिंह पेशे से प्रोफेसर व अध्यक्ष है, पंजाबी विभाग, पंजाबविश्वविद्यालय चंडीगढ़ के। डॉ सरबजीत सिंह स्वभाव से शिक्षक के साथ साथ एक्टिविस्ट हैं, सामाजिक न्याय के पक्षधर हैं और बराबरी वाले एक सुंदर समाज को गढ़ने में योगदान दे रहे हैं। आप सबके लिए पेश हैं डॉ सरबजीत सिंह से हुई बातचीत :