क्रांतिकारी कवि ‘पाश’ को याद करते हुए

स्पेन के लोककवि लोर्का की हत्या के बारे में कहा जाता है कि जब उसकी अमर कविता ‘एक बुलफाइटर की मौत पर शोकगीत’ का टेप जनरल फ़्रैंको को सुनाया गया तो जनरल ने आदेश दिया कि यह आवाज़ बंद होनी चाहिए। पाश के रूप में पंजाब को भी एक लोर्का मिला था। यह कहना है प्रसिद्ध आलोचक और साहित्यकार नामवर सिंह का है|

पाश सत्तर के दशक में पंजाबी काव्य जगत के रौशन सितारा थे। वह अपने समाज और अपनी ज़मीन से सीधे जुड़े हुए कवि थे। पाश की कविताओं को पढ़ते हुए बार-बार आप पाठक की भूमिका भूल जाते हैं और अपने समय और अपने ख़ुद के वजूद से एक बार फिर साक्षात्कार करने लगते हैं, और एक ऐसे आत्मसंघर्ष में उतर पड़ते हैं जो अपने किसी बहुत नज़दीकी दोस्त के साथ अंतरंग ईमानदार बातचीत के दौरान ही मुमकिन हो सकता है।

पाश की कविताएं उस समय के गहरे इतिहास-बोध की कविताएं हैं, जो पूरी दुनिया और हमारे देश के स्तर पर एक विचित्र किस्म का, जटिल किस्म का संक्रमण-काल रहा है। पाश की कविताएं गहरे अर्थों में राजनीतिक कविताएं हैं। पाश की कविताओं की एक अपनी लय है जो पंजाबी लोक साहित्य की वाचिक परंपरा और वहां के जनसंघर्षों के सुदीर्घ इतिहास की लोक-स्मृतियों के साथ ही वहां की मिट्टी, वहां की नदियों, वहां के नृत्यों-गीतों से रची हुई है। लेकिन इसके साथ ही साथ पाश की प्रगतिधर्मिता में पूरे भारतीय जन की स्मृति, परंपरा और समकालीन जीवन की गति का द्वंद्व भी है और पूरी दुनिया के लड़ते हुए लोगों के बिरादराना रिश्तों की बुनावट भी। 

पाश की सबसे लोकप्रिय रचनाओं में से एक सपनों का मर जाना है…

“सबसे ख़तरनाक होता है आदमी के सपनों का मर जाना”

पाश के ये बोल उनको एक क्रांतिकारी कवि के रूप में स्‍थापित करते हैं। अपनी उम्मीदों को हमेशा जवां रखने का जज़्बा रखे हुए वह शहीदे आज़म भगत सिंह के क़रीब ठहरते हैं।

सपने पर जोर देने वाले पाश आज पंजाब और पंजाबी के ही नहीं बल्कि पूरे भारत के कवि हैं और सभी भारतीय भाषाओं में पढ़े जाते हैं।

उनकी कविताओं में जूझते रहने की जिजीविषा उन्हें समय को चुनौती देने वाली क़लम का एक कद्दावर किरदार बनाती है। पाश की कविताओं में बैल, रोटियां हुक्‍का, चांद की रात अर्थात पूरे गांव की एक सोंधी ‌ख़ुश्बू है। यह आम आदमी की उम्‍मीद ही तो है, जिसे हमेशा पाश जवां बने रहने की ताकीद करते हैं। पाश ने कहा है कि ‘मैं आदमी हूं, बहुत-बहुत छोटा-छोटा, कुछ जोड़कर बना हूं’। यह उनकी आस को ही जगज़ाहिर करता है। वे ज़िंदगीभर इसी छोटे-छोटे बहुत कुछ को बचाने की को‌शिश करते रहे। पाश दुनिया को जीने लायक़ बनाने में सपने को महत्वपूर्ण मानते हैं।

पंजाब में जब खालिस्तानी आतंकवाद अपने उफ़ान पर था और बहुत से साहित्यकारों ने चुप्पी साध रखी थी, पाश की कलम उस समय भी नहीं रूकी। पाश ने अपनी कविताओं के जरिये मोर्चे पर डटे रहे। 23 मार्च 1988 में आतंकवादियों (खालिस्तानियों) के हाथों अपने मित्र हंसराज के साथ अपने गांव में मारे गए। यह संयोग ही है कि इसी तारीख को देश की आज़ादी के एक बड़े हीरो भगत सिंह की शहादत का दिन है, जिनकी राजनीतिक विचाराधारा से कवि पाश प्रेरित थे।

भगत सिंह के समतावादी विचारों को अपनी कविता में बखूबी दर्ज करते हैं। पाश को क्रांति का कवि कहा जाता है और उनकी कविताएं व्यवस्था से सीधे टकराती हैं, सवाल करती हैं। लेकिन असल में उनके इस रचनात्मक प्रतिरोध के पीछे देश और दुनिया के प्रति उनकी मोहब्बत थी।

मेरी दोस्त, मैं अब विदा लेता हूँ

मैंने एक कविता लिखनी चाही थी

सारी उम्र जिसे तुम पढ़ती रह सकतीं

उस कविता में

महकते हुए धनिए का ज़िक्र होना था

ईख की सरसराहट का ज़िक्र होना था

उस कविता में

तेरे लिए

मेरे लिए

और ज़िन्दगी के सभी रिश्तों के लिए बहुत कुछ होना था मेरी दोस्त

लेकिन बहुत ही बेस्वाद है

दुनिया के इस उलझे हुए नक़्शे से निपटना

अब मैं विदा लेता हूँ

हाँ, यह हमें याद रखना होगा क्योंकि

जब दिल की जेबों में कुछ नहीं होता

याद करना बहुत ही अच्छा लगता है

मैं आदमी हूँ, बहुत कुछ छोटा-छोटा जोड़कर बना हूँ

और उन सभी चीज़ों के लिए

जिन्होंने मुझे बिखर जाने से बचाए रखा

मेरे पास आभार है

मैं शुक्रिया करना चाहता हूँ

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