आप मझसे ज़्यादा खुशनसीब हैं की आप उस इदारे का हिस्सा हैं जिसे मैं ख्वाब में देखता आया हूँ-असीम अहमद अब्बासी (बॉलीवुड लेखक)

aseem bhai

असीम अहमद अब्बासी को आप भले न जानते हो मगर उनके उनके लिखे हुए गानों को आप सभी ने खूब पसंद किया हैं. बॉलीवुड के इस गीतकार को जितना मैं जानता हूँ उससे ये बता सकता हूँ की ये एक सच्चे, नेकदिल और ज़मीन से जुड़े हुए इंसान हैं जिन्हे अलीगढ के हर दुसरे बच्चे की तरह ही चाय पीने का बहुत शौक़ हैं. अभी हाल ही में इनका अलीगढ आना हुआ था और तभी मेरी इनसे पहली मुलाक़ात हुई थी. कभी सोचा ना था की उनके साथ रिक्शे पर बैठ कर अलीगढ के ढाबो तक जाने का और चाय पीने का मौक़ा मिलेगा. उनके जाने के कुछ महीने बाद मेरी उनसे बात हुई और मैंने उनका इंटरव्यू लेने को कहां. वो फ़ौरन मान गए.

मैं– ए.एम.यु में सेशन के दौरान आपने उर्दू से मोहब्बत का ज़िक्र किया था. ऐसी को घटना या कोई खास शायर जो आपकी ज़िंदगी का  टर्निंग पॉइंट रहा या जिससे आप मुतास्सिर हुए ?

असीम भाई (असीम अहमद अब्बासी)– सबसे पहले तो मैं शुक्रगुज़ार हू अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का, आप सब हज़रात का क्यों की अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के साथ नाम जुड़ना मेरे लिए बहुत ख़ास बात है. जैसा आपने सवाल किया उर्दू से मोहब्बत का सो वो मुझे बचपन से ही है. एक तो अल्लाह ने इस ज़बान को एक शिरीन लहजा, एक तासीर ए लतीफ़ बख्शी है की इंसान खुद-ब-खुद इसकी जानिब खिंचा चला आता है, और फिर अल्लाह ने मेरा ज़ेहन भी अदब और शायरी की तरफ ही झुकने वाला बनाया है सो मैं अल्हम्दुलिल्लाह इस ज़बान की तरफ खिंचा चला आया. जहाँ तक घटना की बात है तो यूँ है की उर्दू से मेरा ताल्लुक़ात बचपन से ही रहा है. पढाई को लेकर घर में कोताही नही बरती जाती थी और अक्सर विषयो पर किताबें मौजूद रहीं. उनमें उर्दू शायरी और लिटरेचर की किताबें भी मौजूद रहीं. जहाँ तक मझे मुतास्सिर करने वाले शायरों का सवाल है मझे ग़ालिब, साहिर लुधियानवी, अहमद फ़राज़, परवीन शाकिर, पीरज़ादा क़ासिम और क़तील शिफ़ाई ने बहुत मुतास्सिर किया है.

मैं – आपका लिखा हुआ एक गाना है एम्प्टीनेस्स जिसे तीस लाख से ज़्यादा हिट मिलें और उससे कहीं ज़्यादा उसे डाउनलोड किया गया..फिर उससे जुडी एक कहानी सामने आती है और फिर दूसरी कहानी आती है. ये पूरा माजरा क्या है?

असीम भाई (असीम अहमद अब्बासी)– देखिये मैं अक्सर जगह पर इस सवाल का जवाब देता आया हूँ. यह कहानी जो मेरे गीत ‘एम्प्टीनेस्स’ के साथ जुडी है इसकी हकीकत जितना मैं जनता हूँ (अल्हम्दोलिल्लाह) वो ये है की मैंने ये गीत ‘गजेन्द्र वर्मा’ की धुन पर लिखा था और उन्होंने ही इसे गाया भी. इसके अंग्रेजी हिस्से मनोमय रॉय ने लिखे हैं. जिनसे कभी मेरी मुलाक़ात न तो हुई है न तो मैंने उन्हें कभी देखा है. बहर हाल इस गीत के बनाने में जिन लोगो का हाथ है वो हूँ मैं, गजेन्द्र और मनोमय. इसके इलावा अगर कोई कहता है की ये गीत उसने लिखा है तो वो सीधे सीधे लफ्ज़ो में झूठा है और बाक़ी सब बातें अफवाह है जो किसने फैलाई हैं ये अल्लाह बेहतर जानता है.

मैं – आपने रेडियो में काम करा है. गीतकार और शायर होने के साथ साथ आप क्रिएटिव राइटर भी हैं. ऐसी क्या चीज़ें हैं जो आपको वक़्त वक़्त पर मुतास्सिर करती रहती हैं?

असीम भाई (असीम अहमद अब्बासी)– देखिये एक फनकार के अंदर एक ऐसी आग या प्यास होती है जो बुझती नही है, और अगर ये न हो तो इंसान फनकार नही है. आप कितना भी अच्छा लिख लें एक कसक सी रहती है की और अच्छा करूँ इसमें कमी है. तो ये जो आपने कहा न की मुतास्सिर के लिए की कौन करता है. बात ऐसी है मेरे साथ मेरा सारा वक़्त उसी कमी को ठीक करने में निकल जाता है. लिहाज़ा यूं कह सकते हैं की –
राह ए फलाह ढूंढ़ती थी खूबियां मेरी,
कमियों ने खुल के की है मगर रहबरी मेरी.

मैं – आप एक मिडिल क्लास फैमिली से आतें हैं मगर आज आप बॉलीवुड में जाना पहचाना चेहरा हैं. यह पूरा सफर कैसा रहा?

असीम भाई (असीम अहमद अब्बासी)– यह आप सब का प्यार है की आप मझे पसंद करते हैं मेरे काम को पसंद करते हैं (अल्हम्दोलिल्लाह). ये सच है की बहुत तंग गलियों से मेरा सफर शुरू हुआ है और अब भी जारी है. सफर कोई भी हो तकलीफ भी होती है और लुत्फ़ भी आता है. यहीं ज़िंदगी है दोस्तों.

मैं – खलाएँ जो की एक बेहतरीन कविताओं का संगम है. इसे लिखने का ख़याल कब आया और इसे लिखने की क्या वजह थी?

असीम भाई (असीम अहमद अब्बासी)– खलाएँ मैंने ये सोच कर नही लिखी थी की इसे किताब की शक्ल दूंगा. ये मेरी वो शायरी है जो मैंने बस शायरी कहने की ग़रज़ से की. बाद में पोएट्स कार्नर ग्रुप से जुड़ने के बाद यासीन अनवर भाई के कहने पर मैंने इसे किताब शायह कराने का फैसला किया और खलाएँ आप तक आई.

मैं – कम उम्र बच्चे जो आप जैसा शायर बनने का ख्वाब रखते है, उनसे आप क्या कहना चाहेंगे?

असीम भाई (असीम अहमद अब्बासी)– मैं आपने अभी तक के सफर में जितना सा कुछ सीख सका हूँ उतना सा सीख कर ये कह पा रहा हूँ ” दोस्तों अच्छा पढ़ें, अच्छा सुनें, अच्छा सोचें तभी अच्छा कह पाएंगे. अपनी क्वालिटी की तरफ ध्यान दें, जो बिक रहा ह उसकी तरफ न जाएं. ट्रेंड का हिस्सा न बनें, ट्रेंड सेटर बनें. मेरी दुआएं आपके साथ हैं.

मैं – ए.एम.यु. में आपने कुछ वक़्त गुज़ारा, कैसा एक्सपीरियंस रहा? कोई ख़ास याद जो आप शेयर करना चाहेंगे?

असीम भाई (असीम अहमद अब्बासी)– जैसा की मैं आपसे पहले भी कह चूका हूँ की ये मेरे लिए खास है की आपने मझे अपनी मुक़द्दस सरज़मीं पर बुलाया और आप सब से रुबरु होने का मझे मौक़ा मिला. मैं शुरू से ही ए.एम.यु. का हिस्सा होना चाहता था. उर्दू से वाबस्तगी की वजह से मैंने हमेशा इस अज़ीम यूनिवर्सिटी का ख्वाब देखा की मैं काश यहाँ पढ़ा होता, काश मैं यहाँ का फ़र्द होता. एक दिन मझे आपके यहाँ से बुलावा आया की मझे आप लोगों ने मेहमान की हैसियत से बुलाया है. यक़ीन जानिए ये मेरी ज़िंदगी के सबसे खुशरंग और मसर्रत से पूर लम्हों में से है जिसे मैं कभी नही भूलता. आप मझसे ज़्यादा खुशनसीब हैं की आप उस इदारे का हिस्सा हैं जिसे मैं ख्वाब में देखता आया और दूर से ही उसकी मिट्टी की महक महसूस करता हूँ.
गुलशन के गुलों, फूल हूँ उनमें से एक मैं,
सदक़े में तम्हारे जो वीरानों में खिले हैं.

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *