संस्थाएं स्वतंत्र और निर्भीक व्यक्तियों को अफोर्ड ही नहीं कर सकती – शायदा बानो
हम इंसान के तौर पर कहाँ जा रहे हैं हैं मुझे नहीं मालूम।, इसमें हमारे समाज का ढांचा कितना जिम्मेदार है मैं नहीं जानती पर यह सवाल तो है ही कि हम कितना निष्पक्ष और समतामूलक समाज बना पा रहे हैं?