क्रांतिकारी कवि ‘पाश’ को याद करते हुए
पाश सत्तर के दशक में पंजाबी काव्य जगत के रौशन सितारा थे। वह अपने समाज और अपनी ज़मीन से सीधे जुड़े हुए कवि थे। पाश की कविताओं को पढ़ते हुए बार-बार आप पाठक की भूमिका भूल जाते हैं और अपने समय और अपने ख़ुद के वजूद से एक बार फिर साक्षात्कार करने लगते हैं, और एक ऐसे आत्मसंघर्ष में उतर पड़ते हैं जो अपने किसी बहुत नज़दीकी दोस्त के साथ अंतरंग ईमानदार बातचीत के दौरान ही मुमकिन हो सकता है।