नई खेती, विद्रोही की वो क्रांतिकारी कविता

मैं किसान हूँ
आसमान मैं धान बो रहा हूँ।
कुछ लोग कह रहे हैं,
कि पगले आसमान में धान नहीं जमता,
मैं कहता हूँ कि
गेगले-घोघले
अगर ज़मीन पर भगवान जम सकता है,
तो आसमान में धान भी जम सकता है।

और अब तो
दोनों में एक होकर रहेगा—
या तो ज़मीन से भगवान उखड़ेगा
या आसमान में धान जमेगा।

विद्रोही
नई खेती
प्रकाशन सांस, जसम

स्रोत: hindwi.org

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