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विकृत राष्ट्रवाद और ब्राह्मणवाद की व्याख्या करता मुंशी प्रेमचंद का करीब एक सदी पुराना लेख

हम जिस राष्ट्रीयता का स्वप्न देख रहे हैं उसमें तो जन्मगत वर्णों की गंध तक न होगी, वह हमारे श्रमिकों और किसानों का साम्राज्य होगा